इस्लामाबाद: पाकिस्तान की जेल में बंद सरबजीत सिंह की न तो रिहाई होनी है और न ही उनकी सजा कम की गई है। पाकिस्तान के राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता फरहतुल्ला बाबर ने बताया है कि जिस व्यक्ति की रिहाई की बात की गई है, उसका नाम सुरजीत सिंह है।
इससे पहले मंगलवार शाम को खबर आई थी कि पाकिस्तान में पिछले 22 साल से जेल में बंद भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह की फांसी की सजा को राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने माफ कर दिया है और उनकी सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया है।
इसके बाद कयास लगाए जा रहे थे कि सरबजीत को कभी भी रिहा किया जा सकता है, लेकिन देर शाम पाकिस्तान के राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता ने इस बात की पुष्टि की कि सरबजीत सिंह की रिहाई नहीं होगी, बल्कि सुरजीत सिंह की रिहाई का फैसला लिया गया है।
सरबजीत सिंह की रिहाई की खबर गलत होने से उनके परिवार के लोग काफी नाराज हैं। उनकी बहन दलबीर कौर का कहना है कि उनको इस खबर से धक्का लगा है और उनकी भावनाओं के साथ भी खिलवाड़ किया गया है। हालांकि दलबीर ने यह भी कहा है कि उन्हें पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी पर पूरा भरोसा है कि वह जल्द से जल्द सरबजीत को भी रिहा कर देंगे।
सरबजीत को 1990 में पाकिस्तान के शहर लाहौर और फैसलाबाद में हुए चार बम धमाकों के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इन धमाकों में 10 लोगों की मौत हो गई थी। उस वक्त सरबजीत को मनजीत सिंह के नाम से गिरफ्तार किया गया था।
गिरफ्तार होने के बाद सरबजीत ने कहा था कि इन बम धमाकों में उसका कोई हाथ नहीं है और वह भारत के पंजाब प्रांत के तरनतारन का रहने वाला है और गलती से सीमा पार कर पाकिस्तान पहुंच गया था।
इसके बाद सरबजीत पर जासूसी और बम धमाकों के आरोप में लाहौर की एक अदालत में मुकदमा चला और 1991 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। निचली अदालत की इस सजा को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा।
जिस सुरजीत सिंह की रिहाई की खबर पाकिस्तान के राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता फरहतुल्ला बाबर ने दी है, उन्हें 1982 में पाकिस्तान में जासूसी के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था। 1985 में आर्मी की कोर्ट ने सुरजीत को फांसी की सजा सुनाई थी।
इसके बाद 1988 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति इशाक खान ने सुरजीत की मौत की सजा को बदल कर उम्रकैद में बदल दिया था। 2010 में सुरजीत ने अपनी सजा पूरी की, लेकिन उनकी रिहाई नहीं हुई। इसके बाद सुरजीत का मामला लाहौर कोर्ट पहुंचा, जहां से उन्हें जल्द से जल्द रिहा करने के आदेश दिए गए।
इससे पहले मंगलवार शाम को खबर आई थी कि पाकिस्तान में पिछले 22 साल से जेल में बंद भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह की फांसी की सजा को राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने माफ कर दिया है और उनकी सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया है।
इसके बाद कयास लगाए जा रहे थे कि सरबजीत को कभी भी रिहा किया जा सकता है, लेकिन देर शाम पाकिस्तान के राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता ने इस बात की पुष्टि की कि सरबजीत सिंह की रिहाई नहीं होगी, बल्कि सुरजीत सिंह की रिहाई का फैसला लिया गया है।
सरबजीत सिंह की रिहाई की खबर गलत होने से उनके परिवार के लोग काफी नाराज हैं। उनकी बहन दलबीर कौर का कहना है कि उनको इस खबर से धक्का लगा है और उनकी भावनाओं के साथ भी खिलवाड़ किया गया है। हालांकि दलबीर ने यह भी कहा है कि उन्हें पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी पर पूरा भरोसा है कि वह जल्द से जल्द सरबजीत को भी रिहा कर देंगे।
सरबजीत को 1990 में पाकिस्तान के शहर लाहौर और फैसलाबाद में हुए चार बम धमाकों के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इन धमाकों में 10 लोगों की मौत हो गई थी। उस वक्त सरबजीत को मनजीत सिंह के नाम से गिरफ्तार किया गया था।
गिरफ्तार होने के बाद सरबजीत ने कहा था कि इन बम धमाकों में उसका कोई हाथ नहीं है और वह भारत के पंजाब प्रांत के तरनतारन का रहने वाला है और गलती से सीमा पार कर पाकिस्तान पहुंच गया था।
इसके बाद सरबजीत पर जासूसी और बम धमाकों के आरोप में लाहौर की एक अदालत में मुकदमा चला और 1991 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। निचली अदालत की इस सजा को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा।
जिस सुरजीत सिंह की रिहाई की खबर पाकिस्तान के राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता फरहतुल्ला बाबर ने दी है, उन्हें 1982 में पाकिस्तान में जासूसी के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था। 1985 में आर्मी की कोर्ट ने सुरजीत को फांसी की सजा सुनाई थी।
इसके बाद 1988 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति इशाक खान ने सुरजीत की मौत की सजा को बदल कर उम्रकैद में बदल दिया था। 2010 में सुरजीत ने अपनी सजा पूरी की, लेकिन उनकी रिहाई नहीं हुई। इसके बाद सुरजीत का मामला लाहौर कोर्ट पहुंचा, जहां से उन्हें जल्द से जल्द रिहा करने के आदेश दिए गए।
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